एक जैसे लग रहे हैं अब सभी चेहरे मुझे
होश की ये इंतिहा है या बहुत नश्शे में हूँ
Habib Jalib
Javed Akhtar
Rahat Indori
Gulzar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Anwar Masood
Wasi Shah
Allama Iqbal
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कितना आसान था बचपन में सुलाना हम को
फिर वो बे-सम्त उड़ानों की कहानी सुन कर
मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है
सच्चाइयों को बर-सर-ए-पैकार छोड़ कर
मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी
सवाब है या किसी जनम का हिसाब कोई चुका रहा हूँ
जुस्तुजू मेरी कहीं थी और मैं भटका कहीं
सब ने होंटों से लगा कर तोड़ डाला है मुझे
ख़्वाहिश-ए-पर्वाज़ है तो बाल-ओ-पर भी चाहिए
कब तलक चलना है यूँ ही हम-सफ़र से बात कर
शायद बता दिया था किसी ने मिरा पता
मैं अब जो हर किसी से अजनबी सा पेश आता हूँ