उठ कर चले गए तो कभी फिर न आएँगे
फिर लाख तुम बुलाओ सदाएँ दिया करो
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हम तो बेगाने से ख़ुद को भी मिले हैं 'बिल्क़ीस'
हमारी जागती आँखों में ख़्वाब सा क्या था
पाबंदियों से अपनी निकलते वो पा न थे
जाने क्या कुछ है आज होने को
एक आलम है ये हैरानी का जीना कैसा
है यूँ कि कुछ तो बग़ावत-सिरिश्त हम भी हैं
नज़र आता है वो जैसा नहीं है
कब एक रंग में दुनिया का हाल ठहरा है
बे-तअल्लुक़ सारे रिश्ते कौन किस का आश्ना
यूँ चुप रहा करे से तो हो जाए है जुनूँ
बस एक जान बची थी छिड़क दी राहों पर
ज़ख़्म को फूल कहें नौहे को नग़्मा समझें