जाने क्या कुछ है आज होने को
जी मिरा चाहता है रोने को
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अपनी तो कोई बात बनाए नहीं बनी
ज़रा सी देर भी रुकता तो कुछ पता चलता
जीना है ख़ूब औरों की ख़ातिर जिया करो
अनहोनी कुछ ज़रूर हुई दिल के साथ आज
ख़ुद पे ये ज़ुल्म गवारा नहीं होगा हम से
नज़र आता है वो जैसा नहीं है
दहशत-ज़दा ज़मीं पर वहशत भरे मकाँ ये
दर बदर की ख़ाक थी तक़दीर में
काँटे हों या फूल अकेले चुनना होगा
मिरी हथेली में लिक्खा हुआ दिखाई दे