जिन में खो कर हम ख़ुद को भी भूल गए हैं
क्या हम को भी उन आँखों ने ढूँडा होगा
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हमारी जागती आँखों में ख़्वाब सा क्या था
जीना है ख़ूब औरों की ख़ातिर जिया करो
जाने क्या कुछ है आज होने को
एक आलम है ये हैरानी का जीना कैसा
तमाम लाला ओ गुल के चराग़ रौशन हैं
बे-तअल्लुक़ सारे रिश्ते कौन किस का आश्ना
बस एक जान बची थी छिड़क दी राहों पर
दीवार-ओ-दर में सिमटा इक लम्स काँपता है
उठ कर चले गए तो कभी फिर न आएँगे
शाम से हम ता सहर चलते रहे
तेरी तो 'बिल्क़ीस' निराली ही बातें हैं