ख़ुद पे ये ज़ुल्म गवारा नहीं होगा हम से
हम तो शो'लों से न गुज़़रेंगे न सीता समझें
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जीना है ख़ूब औरों की ख़ातिर जिया करो
नहीं है ख़्वाब दीवाने का हस्ती
किस ने कहा किसी का कहा तुम किया करो
ज़ख़्म को फूल कहें नौहे को नग़्मा समझें
जाने क्या कुछ है आज होने को
देता था जो साया वो शजर काट रहा है
यूँ चुप रहा करे से तो हो जाए है जुनूँ
अनहोनी कुछ ज़रूर हुई दिल के साथ आज
हम तो बेगाने से ख़ुद को भी मिले हैं 'बिल्क़ीस'
हर-दिल-अज़ीज़ वो भी है हम भी हैं ख़ुश-मिज़ाज
एक आलम है ये हैरानी का जीना कैसा
कब इक मक़ाम पे रुकती है सर-फिरी है हवा