नफ़रत से बचा कर तू उल्फ़त को सजा दिल में
पैग़ाम मोहब्बत का हर बार दिए जाना
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ख़ामुशी में क़यास मेरा है
बे-क़रारी दिल-ए-मुज़्तर की बढ़ाई हम ने
ख़ुद को तमाशा ख़ूब बनाता रहा हूँ मैं
जिस ने जाना जहाँ तमाशा है
पास होने का इशारा मिल गया
बे-रुख़ी ने उस की कैसा ये इशारा कर दिया
संग को छोड़ के तू ने कभी सोचा ही नहीं
ख़ुशियाँ थीं बेवफ़ा न रहीं ज़िंदगी के साथ
सोज़-ए-फ़िराक़ दिल में छुपाए हुए हैं हम
मिरी ज़िंदगी है तन्हा तुम्हें कुछ असर तो होता
शिकवा नसीब का न करे बार बार तू