दरबानों तक के चेहरे रऊनत से मस्ख़ हैं
दस्त-ए-तलब लिए हुए फिर भी खड़े हैं लोग
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Gulzar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
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किसी के शिकवा-हा-ए-जौर से वाक़िफ़ ज़बाँ क्यूँ हो
मैं उस के ऐब उस को बताता भी किस तरह
राह-रौ बच के चल दरख़्तों से
मय-ख़ाना है बिना-ए-शर-ओ-ख़ैर तो नहीं
कहाँ सबात-ए-ग़म-ए-दिल कहाँ सराब-ए-सुकूँ
दिल बुझ गया तो गर्मी-ए-बाज़ार भी नहीं
जिस को देखो बेवफ़ा है आइनों के शहर में
मदावा-ए-जुनूँ सैर-ए-गुलिस्ताँ से नहीं होता
चढ़ते सूरज की मुदारात से पहले 'एजाज़'
बरसों में भी छू जाए किसी को तो ग़नीमत
आप आए हैं हाल पूछा है
याद उन की दिल में आई वो आसूदगी लिए