मैं उस के ऐब उस को बताता भी किस तरह
वो शख़्स आज तक मुझे तन्हा नहीं मिला
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बरसों में भी छू जाए किसी को तो ग़नीमत
चढ़ते सूरज की मुदारात से पहले 'एजाज़'
याद उन की दिल में आई वो आसूदगी लिए
ऐ संग-ए-आस्ताँ मिरे सज्दों की लाज रख
मय-ख़ाना है बिना-ए-शर-ओ-ख़ैर तो नहीं
राह-ए-तलब में अहल-ए-दिल जब हद-ए-आम से बढ़े
कहाँ सबात-ए-ग़म-ए-दिल कहाँ सराब-ए-सुकूँ
दिल बुझ गया तो गर्मी-ए-बाज़ार भी नहीं
ख़ून-ए-नाहक़ थी फ़क़त दुनिया-ए-आब-ओ-गिल की बात
मदावा-ए-जुनूँ सैर-ए-गुलिस्ताँ से नहीं होता
दरबानों तक के चेहरे रऊनत से मस्ख़ हैं