राह-रौ बच के चल दरख़्तों से
धूप दुश्मन नहीं है साए हैं
Javed Akhtar
Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Wasi Shah
Habib Jalib
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(801) Peoples Rate This
किसी के शिकवा-हा-ए-जौर से वाक़िफ़ ज़बाँ क्यूँ हो
याद उन की दिल में आई वो आसूदगी लिए
ख़ून-ए-नाहक़ थी फ़क़त दुनिया-ए-आब-ओ-गिल की बात
दरबानों तक के चेहरे रऊनत से मस्ख़ हैं
ऐ संग-ए-आस्ताँ मिरे सज्दों की लाज रख
कार-ए-ख़ैर इतना तो ऐ लग़्ज़िश-ए-पा हो जाता
जिस को देखो बेवफ़ा है आइनों के शहर में
राह-ए-तलब में अहल-ए-दिल जब हद-ए-आम से बढ़े
मदावा-ए-जुनूँ सैर-ए-गुलिस्ताँ से नहीं होता
चुप खड़े हैं दरमियान-ए-का'बा-ओ-बुत-ख़ाना हम
चढ़ते सूरज की मुदारात से पहले 'एजाज़'