जब बुलंदी पर पहुँच जाते हैं लोग
किस क़दर छोटे नज़र आते हैं लोग
Habib Jalib
Rahat Indori
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Gulzar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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तसव्वुर में कोई आया सुकून-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ हो कर
कुछ ज़िंदगी में लुत्फ़ का सामाँ नहीं रहा
गुलों के चेहरा-ए-रंगीं पे वो निखार नहीं
कोई तसव्वुर में जल्वा-गर है बहार दिल में समा रही है
बला से बर्क़ ने फूँका जो आशियाने को
फिर ज़बान-ए-इश्क़ चश्म-ए-ख़ूँ-फिशाँ होने लगी
ग़म-ए-जानाँ के सिवा कुछ हमें प्यारा न हुआ