ये जो लाहौर से मोहब्बत है
ये किसी और से मोहब्बत है
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ग़ज़लें लिख लिख पागल होने वाला हूँ
चेहरे से कब अयाँ है मिरे इज़्तिरार भी
बिल्कुल तुम सा और तुम्हारा लगता हूँ
रेशम ज़ुल्फ़ के तार भी बातें करते हैं
दीवाना-पन और बेकारी मिलती है
उस ने किया हिजाब मिरे देखने के बा'द
बिजली सी इक और गिरा दी ज़ालिम ने
घर से तुम्हारी दी हुई चीज़ें निकाल दें