ये आब-ओ-ताब इसी मरहले पे ख़त्म नहीं
कोई चराग़ है इस आइने से बाहर भी
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Rahat Indori
Habib Jalib
Allama Iqbal
Gulzar
Parveen Shakir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1464) Peoples Rate This
इक शम्अ' की सूरत में मंज़ूर किया जाऊँ
ख़ुदा-ए-बर्तर ने आसमाँ को ज़मीन पर मेहरबाँ किया है
एक घर अपने लिए तय्यार करना है मुझे
मैं एक मुद्दत से इस जहाँ का असीर हूँ और सोचता हूँ
जिस क़दर महमेज़ करता हूँ मैं 'साजिद' वक़्त को
हम मुसाफ़िर हैं गर्द-ए-सफ़र हैं मगर ऐ शब-ए-हिज्र हम कोई बच्चे नहीं
मिल गई है बादिया-पैमाई से मंज़िल मिरी
सिसक रही हैं थकी हवाएँ लिपट के ऊँचे सनोबरों से
क़र्या-ए-हैरत में दिल का मुस्तक़र इक ख़्वाब है
दस्त-ए-राहत ने कभी रँज-ए-गिराँ-बारी ने
रास आई है न आएगी ये दुनिया लेकिन