उस के होने से हुई है अपने होने की ख़बर
कोई दुश्मन से ज़ियादा लाएक़-ए-इज़्ज़त नहीं
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समझते हैं जो अपने बाप की जागीर मिट्टी को
लौट जाने की इजाज़त नहीं दूँगा उस को
ये सच है मेरी सदा ने रौशन किए हैं मेहराब पर सितारे
सर पर किसी ग़रीब के नाचार गिर पड़े
आइना-आसा ये ख़्वाब-ए-नीलमीं रक्खूँगा मैं
लहू की आग अगर जलती रहेगी
ये सच है मिल बैठने की हद तक तो काम आई है ख़ुश-गुमानी
ज़मीन मेरी रहेगी न आइना मेरा
उफ़ुक़ से आग उतर आई है मिरे घर भी
होंटों पर है बात कड़ी ताज़ीरें भी
ये आब-ओ-ताब इसी मरहले पे ख़त्म नहीं
रास आती ही नहीं जब प्यार की शिद्दत मुझे