लौट जाने की इजाज़त नहीं दूँगा उस को
कोई अब मेरे तआक़ुब में अगर आता है
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चराग़ की ओट में है मेहराब पर सितारा
ये सच है मेरी सदा ने रौशन किए हैं मेहराब पर सितारे
मैं रिज़्क़-ए-ख़्वाब हो के भी उसी ख़याल में रहा
होंटों पर है बात कड़ी ताज़ीरें भी
मैं अपने सूरज के साथ ज़िंदा रहूँगा तो ये ख़बर मिलेगी
किस ने दी आवाज़ ''सिपर की ओट में था''
मता-ए-बर्ग-ओ-समर वही है शबाहत-ए-रंग-ओ-बू वही है
आज खुला दुश्मन के पीछे दुश्मन थे
चराग़-ए-ख़ाना-ए-दिल को सुपुर्द-ए-बाद कर दूँ
इस अँधेरे में चराग़-ए-ख़्वाब की ख़्वाहिश नहीं
लरज़ जाता है थोड़ी देर को तार-ए-नफ़स मेरा
रास आई है न आएगी ये दुनिया लेकिन