किसी ने फ़क़्र से अपने ख़ज़ाने भर लिए लेकिन
किसी ने शहरयारों से भी सीम-ओ-ज़र नहीं पाए
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Wasi Shah
Rahat Indori
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1492) Peoples Rate This
ढूँड लाया हूँ ख़ुशी की छाँव जिस के वास्ते
मैं रिज़्क़-ए-ख़्वाब हो के भी उसी ख़याल में रहा
आज खुला दुश्मन के पीछे दुश्मन थे
उस के होने से हुई है अपने होने की ख़बर
इश्क़ पर फ़ाएज़ हूँ औरों की तरह लेकिन मुझे
मता-ए-दीद तो क्या जानिए किस से इबारत है
मिरी सुब्ह-ए-ख़्वाब के शहर पर यही इक जवाज़ है जब्र का
अपने अपने लहू की उदासी लिए सारी गलियों से बच्चे पलट आएँगे
लरज़ जाता है थोड़ी देर को तार-ए-नफ़स मेरा
हुदूद-ए-क़र्या-ए-वहम-ओ-गुमाँ में कोई नहीं
होंटों पर है बात कड़ी ताज़ीरें भी