Ghazals of Ghulam Mohammad Qasir

Ghazals of Ghulam Mohammad Qasir
नामग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
अंग्रेज़ी नामGhulam Mohammad Qasir
जन्म की तारीख1941
मौत की तिथि1999
जन्म स्थानPeshawar

ज़ेहन में दाएरे से बनाता रहा दूर ही दूर से मुस्कुराता रहा

यूँ तो सदा-ए-ज़ख़्म बड़ी दूर तक गई

ये जहाँ-नवर्द की दास्ताँ ये फ़साना डोलते साए का

याद अश्कों में बहा दी हम ने

वो बे-दिली में कभी हाथ छोड़ देते हैं

वादे यख़-बस्ता कमरों के अंदर गिरते हैं

सोते हैं वो आईना ले कर ख़्वाबों में बाल बनाते हैं

सोए हुए जज़्बों को जगाना ही नहीं था

सीना मदफ़न बन जाता है जीते जागते राज़ों का

शौक़ बरहना-पा चलता था और रस्ते पथरीले थे

सब रंग ना-तमाम हों हल्का लिबास हो

रात उस के सामने मेरे सिवा भी मैं ही था

रात का हर इक मंज़र रंजिशों से बोझल था

फिर वो दरिया है किनारों से छलकने वाला

फिर वही कहने लगे तू मिरे घर आया था

फिर तो इस बे-नाम सफ़र में कुछ भी न अपने पास रहा

पहले इक शख़्स मेरी ज़ात बना

नज़र नज़र में अदा-ए-जमाल रखते थे

मोहब्बत की गवाही अपने होने की ख़बर ले जा

मिलने की हर आस के पीछे अन-देखी मजबूरी थी

लब पे सुर्ख़ी की जगह जो मुस्कुराहट मल रहे हैं

कुछ बे-तरतीब सितारों को पलकों ने किया तस्ख़ीर तो क्या

किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं

ख़्वाब कहाँ से टूटा है ताबीर से पूछते हैं

ख़ामोश थे तुम और बोलता था बस एक सितारा आँखों में

कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला

कहीं लोग तन्हा कहीं घर अकेले

जज़्बों को किया ज़ंजीर तो क्या तारों को किया तस्ख़ीर तो क्या

हम ने तो बे-शुमार बहाने बनाए हैं

हिज्र के तपते मौसम में भी दिल उन से वाबस्ता है

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