Hope Poetry of Ghulam Mohammad Qasir

Hope Poetry of Ghulam Mohammad Qasir
नामग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
अंग्रेज़ी नामGhulam Mohammad Qasir
जन्म की तारीख1941
मौत की तिथि1999
जन्म स्थानPeshawar

ये भी इक रंग है शायद मिरी महरूमी का

उम्मीद की सूखती शाख़ों से सारे पत्ते झड़ जाएँगे

किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं

हर साल बहार से पहले मैं पानी पर फूल बनाता हूँ

बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो

आया है इक राह-नुमा के इस्तिक़बाल को इक बच्चा

ज़िंदगी

समीता-पाटिल

कहफ़-उल-क़हत

एक ज़ाती नज़्म

दुआ और बद-दुआ के दरमियाँ

वो बे-दिली में कभी हाथ छोड़ देते हैं

सोते हैं वो आईना ले कर ख़्वाबों में बाल बनाते हैं

सोए हुए जज़्बों को जगाना ही नहीं था

रात उस के सामने मेरे सिवा भी मैं ही था

रात का हर इक मंज़र रंजिशों से बोझल था

मिलने की हर आस के पीछे अन-देखी मजबूरी थी

लब पे सुर्ख़ी की जगह जो मुस्कुराहट मल रहे हैं

कुछ बे-तरतीब सितारों को पलकों ने किया तस्ख़ीर तो क्या

किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं

ख़ामोश थे तुम और बोलता था बस एक सितारा आँखों में

जज़्बों को किया ज़ंजीर तो क्या तारों को किया तस्ख़ीर तो क्या

हिज्र के तपते मौसम में भी दिल उन से वाबस्ता है

बयाबाँ दूर तक मैं ने सजाया था

बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो

बन से फ़सील-ए-शहर तक कोई सवार भी नहीं

बन में वीराँ थी नज़र शहर में दिल रोता है

अपने अशआर को रुस्वा सर-ए-बाज़ार करूँ

अक्स की सूरत दिखा कर आप का सानी मुझे

आँख से बिछड़े काजल को तहरीर बनाने वाले

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