Coupletss of Ghulam Mohammad Qasir

Coupletss of Ghulam Mohammad Qasir
नामग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
अंग्रेज़ी नामGhulam Mohammad Qasir
जन्म की तारीख1941
मौत की तिथि1999
जन्म स्थानPeshawar

ज़मानों को उड़ानें बर्क़ को रफ़्तार देता था

ये भी इक रंग है शायद मिरी महरूमी का

याद अश्कों में बहा दी हम ने

वो लोग मुतमइन हैं कि पत्थर हैं उन के पास

वफ़ा के शहर में अब लोग झूट बोलते हैं

उम्मीद की सूखती शाख़ों से सारे पत्ते झड़ जाएँगे

तुम यूँ ही नाराज़ हुए हो वर्ना मय-ख़ाने का पता

तिरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं

सोचा है तुम्हारी आँखों से अब मैं उन को मिलवा ही दूँ

सायों की ज़द में आ गईं सारी ग़ुलाम-गर्दिशें

सब से अच्छा कह के उस ने मुझ को रुख़्सत कर दिया

प्यार गया तो कैसे मिलते रंग से रंग और ख़्वाब से ख़्वाब

पहले इक शख़्स मेरी ज़ात बना

नाम लिख लिख के तिरा फूल बनाने वाला

मोहब्बत की गवाही अपने होने की ख़बर ले जा

कोई मुँह फेर लेता है तो 'क़ासिर' अब शिकायत क्या

किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं

ख़ुशबू गिरफ़्त-ए-अक्स में लाया और उस के बाद

कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला

करूँगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाम

कहते हैं इन शाख़ों पर फल फूल भी आते थे

जिस को इस फ़स्ल में होना है बराबर का शरीक

जिन की दर्द-भरी बातों से एक ज़माना राम हुआ

इस तरह क़हत-ए-हवा की ज़द में है मेरा वजूद

इरादा था जी लूँगा तुझ से बिछड़ कर

हम ने तुम्हारे ग़म को हक़ीक़त बना दिया

हम तो वहाँ पहुँच नहीं सकते तमाम उम्र

हिज्र के तपते मौसम में भी दिल उन से वाबस्ता है

हज़ारों इस में रहने के लिए आए

हर साल की आख़िरी शामों में दो चार वरक़ उड़ जाते हैं

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