Love Poetry of Guhar Khairabadi

Love Poetry of Guhar Khairabadi
नामगुहर खैराबादी
अंग्रेज़ी नामGuhar Khairabadi

वरक़ वरक़ जो ज़माने के शाहकार में था

तूफ़ान समुंदर के न दरिया के भँवर देख

तोड़ कर शीशा-ए-दिल को मिरे बर्बाद न कर

तारीकियों में अपनी ज़िया छोड़ जाऊँगा

मैं ग़र्क़ वहाँ प्यास के पैकर की तरह था

मैं इक मुसाफ़ि-ए-तन्हा मिरा सफ़र तन्हा

जिस तरफ़ भी देखिए साया नहीं

दिल के दामन में जो सरमाया-ए-अफ़्कार न था

दर्द-ए-दिल के साथ क्या मेरे मसीहा कर दिया

चराग़ से कभी तारों से रौशनी माँगे

बे-ख़बर कैसे हो रहे हो तुम

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