Love Poetry of Hafeez Jalandhari (page 3)

Love Poetry of Hafeez Jalandhari (page 3)
नामहफ़ीज़ जालंधरी
अंग्रेज़ी नामHafeez Jalandhari
जन्म की तारीख1900
मौत की तिथि1982
जन्म स्थानLahore

कोई चारा नहीं दुआ के सिवा

किसी के रू-ब-रू बैठा रहा मैं बे-ज़बाँ हो कर

ख़ून बन कर मुनासिब नहीं दिल बहे

कम-बख़्त दिल बुरा हुआ तिरी आह आह का

कल ज़रूर आओगे लेकिन आज क्या करूँ

कभी ज़मीं पे कभी आसमाँ पे छाए जा

जवानी के तराने गा रहा हूँ

जल्वा-ए-हुस्न को महरूम-ए-तमाशाई कर

जहाँ क़तरे को तरसाया गया हूँ

इश्क़ ने हुस्न की बे-दाद पे रोना चाहा

इश्क़ ने अक़्ल को दीवाना बना रक्खा है

इश्क़ में छेड़ हुई दीदा-ए-तर से पहले

इश्क़ के हाथों ये सारी आलम-आराई हुई

हुस्न ने सीखीं ग़रीब-आज़ारियाँ

हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके

हैरान न हो देख मैं क्या देख रहा हूँ

है अज़ल की इस ग़लत बख़्शी पे हैरानी मुझे

दूर से आँखें दिखाती है नई दुनिया मुझे

दोस्ती का चलन रहा ही नहीं

दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ

दिल को वीराना कहोगे मुझे मालूम न था

दिल अभी तक जवान है प्यारे

बे-तअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं

अर्ज़-ए-हुनर भी वज्ह-ए-शिकायात हो गई

ऐ दोस्त मिट गया हूँ फ़ना हो गया हूँ मैं

अब तो कुछ और भी अंधेरा है

आशिक़ सा बद-नसीब कोई दूसरा न हो

आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए

आख़िर एक दिन शाद करोगे

आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने

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