सच है इस एक पर्दे में छुपते हैं लाख ऐब
यानी जनाब-ए-शैख़ की दाढ़ी दराज़ है
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लुट गया वो तिरे कूचे में धरा जिस ने क़दम
ज़ाहिद शराब-ए-नाब हो या बादा-ए-तुहूर
वो हम-कनार है जाम-ए-शराब हाथ में है
कोई जहाँ में न यारब हो मुब्तला-ए-फ़िराक़
मोहब्बत क्या बढ़ी है वहम बाहम बढ़ते जाते हैं
दिल इस लिए है दोस्त कि दिल में है जा-ए-दोस्त
आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बरसों यूँ ज़ब्त से हम ने काम लिया
यूँ तो हसीन अक्सर होते हैं शान वाले
कभी मस्जिद में जो वाइज़ का बयाँ सुनता हूँ
दिल है तो तिरे वस्ल के अरमान बहुत हैं
जब मिला कोई हसीं जान पर आफ़त आई
याद है पहले-पहल की वो मुलाक़ात की बात