शब-ए-विसाल लगाया जो उन को सीने से
तो हँस के बोले अलग बैठिए क़रीने से
Javed Akhtar
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Anwar Masood
Jaun Eliya
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दिल पर लगा रही है वो नीची निगाह चोट
अजब ज़माने की गर्दिशें हैं ख़ुदा ही बस याद आ रहा है
सच है इस एक पर्दे में छुपते हैं लाख ऐब
क़सम निबाह की खाई थी उम्र भर के लिए
ये सब कहने की बातें हैं कि ऐसा हो नहीं सकता
ओ आँख बदल के जाने वाले
मोहब्बत क्या बढ़ी है वहम बाहम बढ़ते जाते हैं
किसी को देख कर बे-ख़ुद दिल-ए-काम हो जाना
आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बरसों यूँ ज़ब्त से हम ने काम लिया
बहुत दूर तो कुछ नहीं घर मिरा
पी कर दो घूँट देख ज़ाहिद
कहा ये किस ने कि वादे का ए'तिबार न था