हकीम मंज़ूर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हकीम मंज़ूर (page 2)

हकीम मंज़ूर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हकीम मंज़ूर (page 2)
नामहकीम मंज़ूर
अंग्रेज़ी नामHakeem Manzoor

हो आँख अगर ज़िंदा गुज़रती है न क्या क्या

हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया

है इज़्तिराब हर इक रंग को बिखरने का

ढल गया जिस्म में आईने में पत्थर में कभी

छोड़ कर मुझ को कहीं फिर उस ने कुछ सोचा न हो

छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा

भेजता हूँ हर रोज़ मैं जिस को ख़्वाब कोई अन-देखा सा

बे-सूद एक सिलसिला-ए-इम्तिहाँ न खोल

बयाबाँ-ज़ाद कोई क्या कहे ख़ुद बे-मकाँ है

अज़िय्यतों को किसी तरह कम न कर पाया

अपनी नज़र से टूट कर अपनी नज़र में गुम हुआ

अजब सहरा बदन पर आब का इबहाम रक्खा है

आगे पीछे उस का अपना साया लहराता रहा

आग जो बाहर है पहुँचेगी अंदर भी

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