गिरेगी कल भी यही धूप और यही शबनम
इस आसमाँ से नहीं और कुछ उतरने का
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बे-सूद एक सिलसिला-ए-इम्तिहाँ न खोल
अजब सहरा बदन पर आब का इबहाम रक्खा है
छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा
मिरे वजूद की दुनिया में है असर किस का
अगरचे उस की हर इक बात खुरदुरी है बहुत
बाग़ में होना ही शायद सेब की पहचान थी
ख़ुद अपने-आप से मिलने का मैं अपना इरादा हूँ
अज़िय्यतों को किसी तरह कम न कर पाया
आगे पीछे उस का अपना साया लहराता रहा
मुझ में थे जितने ऐब वो मेरे क़लम ने लिख दिए
हम किसी बहरूपिए को जान लें मुश्किल नहीं
तेरी आँखों में आँसू भी देखे हैं