अगरचे उस की हर इक बात खुरदुरी है बहुत
मुझे पसंद है ढंग उस के बात करने का
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छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा
न जाने किस लिए रोता हूँ हँसते हँसते मैं
ख़ुशबुओं की दश्त से हमसायगी तड़पाएगी
आग जो बाहर है पहुँचेगी अंदर भी
टूट कर बिखरे न सूरज भी है मुझ को डर बहुत
शहर के आईन में ये मद भी लिक्खी जाएगी
कोई पयाम अब न पयम्बर ही आएगा
सारे मामूलात में इक ताज़ा गर्दिश चाहिए
हम किसी बहरूपिए को जान लें मुश्किल नहीं
भेजता हूँ हर रोज़ मैं जिस को ख़्वाब कोई अन-देखा सा
वो जो अब तक लम्स है उस लम्स का पैकर बने
जो मेरे पास था सब लूट ले गया कोई