हम को इस की क्या ख़बर गुलशन का गुलशन जल गया
हम तो अपना सिर्फ़ अपना आशियाँ देखा किए
Faiz Ahmad Faiz
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Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Habib Jalib
Jaun Eliya
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Gulzar
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मौसम का ज़ुल्म सहते हैं किस ख़ामुशी के साथ
माँगो समुंदरों से न साहिल की भीक तुम
बीते हुए लम्हों के जो गिरवीदा रहे हैं
आइनों से पहले भी रस्म-ए-ख़ुद-नुमाई थी
लोग सुब्ह ओ शाम की नैरंगियाँ देखा किए
आइने से न डरो अपना सरापा देखो
इश्क़ को पास-ए-वफ़ा आज भी करते देखा
हर ज़ख़्म-ए-दिल से अंजुमन-आराई माँग लो
शहर की भीड़ में शामिल है अकेला-पन भी
अहल-ए-हवस के हाथों न ये कारोबार हो
कोई ग़मगीं कोई ख़ुश हो कर सदा देता रहा