ये बद-नसीबी नहीं है तो और फिर क्या है
सफ़र अकेले किया हम-सफ़र के होते हुए
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खुला ये राज़ कि ये ज़िंदगी भी होती है
यहाँ मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है
ख़ुद को इतना जो हवा-दार समझ रक्खा है
हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए
तेरे मेहमाँ के स्वागत का कोई फूल थे हम
मेरी संजीदा तबीअत पे भी शक है सब को
ज़रा सी चोट लगी थी कि चलना भूल गए
दर-ओ-दीवार भी घर के बहुत मायूस थे हम से
हमारे दोस्तों में कोई दुश्मन हो भी सकता है
बड़े हिसाब से इज़्ज़त बचानी पड़ती है
अमीर-ए-शहर से मिल कर सज़ाएँ मिलती हैं
दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला