ना-ख़लफ़ बस-कि उठी इश्क़ ओ जुनूँ की औलाद
कोई आबाद-कुन-ए-ख़ाना-ए-ज़ंजीर नहीं
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Gulzar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(874) Peoples Rate This
साक़ी हैं रोज़-ए-नौ-बहार यक दो सह चार पंज ओ शश
जिस का मयस्सर न था भर के नज़र देखना
इन दोनों घर का ख़ाना-ख़ुदा कौन ग़ैर है
इश्क़ में ख़्वाब का ख़याल किसे
गुल कभू हम को दिखाती है कभी सर्व-ओ-समन
एक-दम ख़ुश्क मिरा दीदा-ए-तर है कि नहीं
बे-वफ़ा गो मिले न तू मुझ को
मेरी उस प्यारी झब से आँख लगी
खेलें आपस में परी-चेहरा जहाँ ज़ुल्फ़ें खोल
निभे थी आन उन्हों की हमेशा इश्क़ में ख़ूब
गर इश्क़ से वाक़िफ़ मरे महबूब न होता
वफ़ा के हैं ख़्वान पर निवाले ज़े-आब अव्वल दोअम ब-आतिश