नज़रों में हुस्न दिल में तुम्हारा ख़याल है
इतने क़रीब हो कि तसव्वुर मुहाल है
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रंग-आमेज़ी से पैदा कुछ असर ऐसा हुआ
मेरी हस्ती में मिरी ज़ीस्त में शामिल होना
लोग अंदाज़ा लगाएँगे अमल से मेरे
हाल बीमार का पूछो तो शिफ़ा मिलती है
निय्यत अगर ख़राब हुई है हुज़ूर की
रौशन है फ़ज़ा शम्स कोई है न क़मर है
क्या बात है नज़रों से अंधेरा नहीं जाता
ऐ शाम-ए-ग़म की गहरी ख़मोशी तुझे सलाम
अपना घर फिर अपना घर है अपने घर की बात क्या
हो ख़ुदा का करम इरादों पर
ज़माना देखता है हंस के चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ मेरी