वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है
आदिल रज़ा मंसूरी
रास्ते सिखाते हैं किस से क्या अलग रखना
आँधियाँ ग़म की चलीं और कर्ब-बादल छा गए
अाबिदा उरूज
गुज़रे जो अपने यारों की सोहबत में चार दिन
ए जी जोश