Hope Poetry (page 213)
इक कर्ब-ए-मुसलसल की सज़ा दें तो किसे दें
आनिस मुईन
बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है
आनिस मुईन
अजब तलाश-ए-मुसलसल का इख़्तिताम हुआ
आनिस मुईन
उस के चेहरे पे तबस्सुम की ज़िया आएगी
आनन्द सरूप अंजुम
लहू लहू आरज़ू बदन का लिहाफ़ होगा
आनन्द सरूप अंजुम
कुछ भी नहीं है पास तुम्हारी दुआ तो है
आनन्द सरूप अंजुम
हर दुआ होगी बे-असर न समझ
आनन्द सरूप अंजुम
कँवल जो वो कनार-ए-आबजू न हो
आमिर सुहैल
यही तो एक तमन्ना है इस मुसाफ़िर की
आलोक श्रीवास्तव
झिलमिलाते हुए दिन-रात हमारे ले कर
आलोक श्रीवास्तव
जब भी तक़दीर का हल्का सा इशारा होगा
आलोक श्रीवास्तव
हर बार हुआ है जो वही तो नहीं होगा
आलोक श्रीवास्तव
हमेशा ज़िंदगी की हर कमी को जीते रहते हैं
आलोक श्रीवास्तव
अगर सफ़र में मिरे साथ मेरा यार चले
आलोक श्रीवास्तव
क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है
आले रज़ा रज़ा
मायूस ख़ुद-ब-ख़ुद दिल-ए-उम्मीद-वार है
आले रज़ा रज़ा
हमीं ने उन की तरफ़ से मना लिया दिल को
आले रज़ा रज़ा
अल्लाह नज़र कोई ठिकाना नहीं आता
आले रज़ा रज़ा
तमाम उम्र कटी उस की जुस्तुजू करते
आल-ए-अहमद सूरूर
टीपू की आवाज़
आल-ए-अहमद सूरूर
ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी
आल-ए-अहमद सूरूर
ये दौर मुझ से ख़िरद का वक़ार माँगे है
आल-ए-अहमद सूरूर
वो जिएँ क्या जिन्हें जीने का हुनर भी न मिला
आल-ए-अहमद सूरूर
वो एहतियात के मौसम बदल गए कैसे
आल-ए-अहमद सूरूर
सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर
आल-ए-अहमद सूरूर
सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र क्या था
आल-ए-अहमद सूरूर
नवा-ए-शौक़ में शोरिश भी है क़रार भी है
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़्वाबों से यूँ तो रोज़ बहलते रहे हैं हम
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़ुश्क खेती है मगर उस को हरी कहते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़याल जिन का हमें रोज़-ओ-शब सताता है
आल-ए-अहमद सूरूर