Hope Poetry (page 211)
हैं अहल-ए-चमन हैराँ ये कैसी बहार आई
आसी रामनगरी
ग़म को सबात है न ख़ुशी को क़रार है
आसी रामनगरी
दी गई तरतीब-ए-बज़्म-ए-कुन-फ़काँ मेरे लिए
आसी रामनगरी
धूप हालात की हो तेज़ तो और क्या माँगो
आसी रामनगरी
बाब-ए-क़फ़स खुलने को खुला है
आसी रामनगरी
रुमूज़-ए-मस्लहत को ज़ेहन पर तारी नहीं करता
आसी करनाली
वो फिर वादा मिलने का करते हैं यानी
आसी ग़ाज़ीपुरी
वो कहते हैं मैं ज़िंदगानी हूँ तेरी
आसी ग़ाज़ीपुरी
ज़ख़्म-ए-दिल हम दिखा नहीं सकते
आसी ग़ाज़ीपुरी
वो क्या है तिरा जिस में जल्वा नहीं है
आसी ग़ाज़ीपुरी
उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था
आसी ग़ाज़ीपुरी
तिरे कूचे का रहनुमा चाहता हूँ
आसी ग़ाज़ीपुरी
ताब-ए-दीदार जू लाए मुझे वो दिल देना
आसी ग़ाज़ीपुरी
सारे आलम में तेरी ख़ुशबू है
आसी ग़ाज़ीपुरी
रविश उस चाल में तलवार की है
आसी ग़ाज़ीपुरी
क़तरा वही कि रू-कश-ए-दरिया कहें जिसे
आसी ग़ाज़ीपुरी
कुछ कहूँ कहना जो मेरा कीजिए
आसी ग़ाज़ीपुरी
इतना तो जानते हैं कि आशिक़ फ़ना हुआ
आसी ग़ाज़ीपुरी
हिर्स दौलत की न इज़्ज़ ओ जाह की
आसी ग़ाज़ीपुरी
एक जल्वे की हवस वो दम-ए-रेहलत भी नहीं
आसी ग़ाज़ीपुरी
उस शोख़ से मिलते ही हुई अपनी नज़र तेज़
आसी फ़ाईकी
ये बात याद रखेंगे तलाशने वाले
आशुफ़्ता चंगेज़ी
तुझे भुलाने की कोशिश में फिर रहे थे कि हम
आशुफ़्ता चंगेज़ी
ख़्वाब जितने देखने हैं आज सारे देख लें
आशुफ़्ता चंगेज़ी
जो हर क़दम पे मिरे साथ साथ रहता था
आशुफ़्ता चंगेज़ी
है इंतिज़ार मुझे जंग ख़त्म होने का
आशुफ़्ता चंगेज़ी
घर में और बहुत कुछ था
आशुफ़्ता चंगेज़ी
घर की हद में सहरा है
आशुफ़्ता चंगेज़ी
घर के अंदर जाने के
आशुफ़्ता चंगेज़ी
एक मंज़र में लिपटे बदन के सिवा
आशुफ़्ता चंगेज़ी