Hope Poetry (page 209)
अहल-ए-जुनूँ थे फ़स्ल-ए-बहाराँ के सर गए
अब्बास रिज़वी
लम्हा-दर-लम्हा तिरी राह तका करती है
अब्बास क़मर
हम ऐसे सर-फिरे दुनिया को कब दरकार होते हैं
अब्बास क़मर
हालत-ए-हाल से बेगाना बना रक्खा है
अब्बास क़मर
अश्कों को आरज़ू-ए-रिहाई है रोइए
अब्बास क़मर
ख़्वाब-गह में सियाह ख़ुशबू था
अब्बास कैफ़ी
उस की वफ़ा न मेरी वफ़ा का सवाल था
अब्बास दाना
नाम ख़ुश्बू था सरापा भी ग़ज़ल जैसा था
अब्बास दाना
न हो जिस पे भरोसा उस से हम यारी नहीं रखते
अब्बास दाना
कोई सुबूत-ए-जुर्म जगह पर नहीं मिला
अब्बास दाना
बेवफ़ाई उस ने की मेरी वफ़ा अपनी जगह
अब्बास दाना
अक़्ल-ओ-दानिश को ज़माने से छुपा रक्खा है
अब्बास दाना
ज़मीन उन के लिए फूल खिलाती है
अब्बास अतहर
चुप-चाप गुज़र जाओ
अब्बास अतहर
अपने अपने सूराख़ों का डर
अब्बास अतहर
जो सारे हम-सफ़र इक बार हिर्ज़-ए-जाँ कर लें
अब्बास अलवी
चश्म-ए-ज़ाहिर-बीं को हर इक पेश-मंज़र आश्ना
अब्बास अलवी
नज़्अ' की सख़्ती बढ़ी उन को पशेमाँ देख कर
अब्बास अली ख़ान बेखुद
किसी से इश्क़ करना और इस को बा-ख़बर करना
अब्बास अली ख़ान बेखुद
बे-वज्ह नहीं उन का बे-ख़ुद को बुलाना है
अब्बास अली ख़ान बेखुद
सब्र की तकरार थी जोश ओ जुनून-ए-इश्क़ से
आज़िम कोहली
कौन बाँधेगा मिरी बिखरी हुई उम्मीद को
आज़िम कोहली
जो हुआ जैसा हुआ अच्छा हुआ
आज़िम कोहली
हम ने मिल-जुल के गुज़ारे थे जो दिन अच्छे थे
आज़िम कोहली
हम लकीरें कुरेद कर देखें
आज़िम कोहली
दुख पे मेरे रो रहा था जो बहुत
आज़िम कोहली
वफ़ा और इश्क़ के रिश्ते बड़े ख़ुश-रंग होते हैं
आज़िम कोहली
ज़र्फ़ है किस में कि वो सारा जहाँ ले कर चले
आज़िम कोहली
थी याद किस दयार की जो आ के यूँ रुला गई
आज़िम कोहली
सुबू उठा मिरे साक़ी कि रात जाती है
आज़िम कोहली