Sharab Poetry (page 35)
नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा
ज़फ़र
न दरवेशों का ख़िर्क़ा चाहिए न ताज-ए-शाहाना
ज़फ़र
न दाइम ग़म है ने इशरत कभी यूँ है कभी वूँ है
ज़फ़र
मोहब्बत चाहिए बाहम हमें भी हो तुम्हें भी हो
ज़फ़र
मैं हूँ आसी कि पुर-ख़ता कुछ हूँ
ज़फ़र
करेंगे क़स्द हम जिस दम तुम्हारे घर में आवेंगे
ज़फ़र
काफ़िर तुझे अल्लाह ने सूरत तो परी दी
ज़फ़र
जिगर के टुकड़े हुए जल के दिल कबाब हुआ
ज़फ़र
जब कि पहलू में हमारे बुत-ए-ख़ुद-काम न हो
ज़फ़र
हिज्र के हाथ से अब ख़ाक पड़े जीने में
ज़फ़र
ज़रूरतों की हमाहमी में जो राह चलते भी टोकती है वो शाइ'री है
बद्र-ए-आलम ख़लिश
जले हैं दिल न चराग़ों ने रौशनी की है
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
भागते सूरज को पीछे छोड़ कर जाएँगे हम
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
आतिश-ए-इश्क़ जब जलाती है
बाबर रहमान शाह
तुम को मैं जब सलाम करता हूँ
बाबर रहमान शाह
मुझे तक़्सीम कर दो
अज़रा अब्बास
तीरगी में सुब्ह की तनवीर बन जाएँगे हम
अज़्म शाकरी
जो यहाँ हाज़िर है वो मिस्ल-ए-गुमाँ मौजूद है
अज़्म बहज़ाद
मोहतसिब आओ चलें आज तो मय-ख़ाने में
अज़ीज़ वारसी
ये हम पर लुत्फ़ कैसा ये करम क्या
अज़ीज़ वारसी
उस ने मिरे मरने के लिए आज दुआ की
अज़ीज़ वारसी
तिरी महफ़िल में फ़र्क़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ कौन देखेगा
अज़ीज़ वारसी
सोज़िश-ए-ग़म के सिवा काहिश-ए-फ़ुर्क़त के सिवा
अज़ीज़ वारसी
ख़ुशी महसूस करता हूँ न ग़म महसूस करता हूँ
अज़ीज़ वारसी
ज़िंदगी यूँ तो गुज़र जाती है आराम के साथ
अज़ीज़ तमन्नाई
करते रहे तआ'क़ुब-ए-अय्याम उम्र-भर
अज़ीज़ तमन्नाई
दहर में इक तिरे सिवा क्या है
अज़ीज़ तमन्नाई
कावाक
अज़ीज़ क़ैसी
कंफ़ेशन
अज़ीज़ क़ैसी
उस की सोचें और उस की गुफ़्तुगू मेरी तरह
अज़ीज़ नबील