Sharab Poetry (page 34)
बे-बुलाए हुए जाना मुझे मंज़ूर नहीं
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
दिल जो सूरत-गर-ए-मअ'नी का सनम-ख़ाना बने
बर्क़ देहलवी
रस्म-ए-सज्दा भी उठा दी हम ने
बाक़ी सिद्दीक़ी
रुश्द-ए-बातिन की तलब है तो कर ऐ शैख़ वो काम
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
कल के दिन जो गिर्द मय-ख़ाने के फिरते थे ख़राब
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
छोड़ कर कूचा-ए-मय-ख़ाना तरफ़ मस्जिद के
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
सीखा जो क़लम से न-ए-ख़ाली का बजाना
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
रखता है यूँ वो ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम दोश पर
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
नर्गिस-ए-मस्त तिरी जाए जो तुल बरसर-ए-गुल
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
मुझे तो इश्क़ में अब ऐश-ओ-ग़म बराबर है
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
मेरी गो आह से जंगल न जले ख़ुश्क तो हो
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
कल मय-कदे की जानिब आहंग-ए-मोहतसिब है
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
जो जहाँ के आइना हैं दिल उन्हों के सादा हैं
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
इस लब से रस न चूसे क़दह और क़दह से हम
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
छुप के नज़रों से इन आँखों की फ़रामोश की राह
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
चश्म-ए-तर जाम दिल-ए-बादा-कशाँ है शीशा
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
उस ने कहा!
बाक़र मेहदी
निरवान
बाक़र मेहदी
वो रिंद क्या कि जो पीते हैं बे-ख़ुदी के लिए
बाक़र मेहदी
सादा काग़ज़ पे कोई नाम कभी लिख लेना!
बाक़र मेहदी
कौन भला ये कहता है ख़ुद आ के हम को मनाएँ आप
बाक़र मेहदी
साक़ी खुलता है पैमाना खुलता है
बलवान सिंह आज़र
लोग भूके हैं बहुत और निवाले कम हैं
बलवान सिंह आज़र
तहलील
बलराज कोमल
यार को हम ने बरमला देखा
बहराम जी
किया है संदलीं-रंगों ने दर बंद
बहराम जी
जो है याँ अासाइश-ए-रंज-ओ-मेहन में मस्त है
बहराम जी
या मुझे अफ़सर-ए-शाहाना बनाया होता
ज़फ़र
रुख़ जो ज़ेर-ए-सुंबल-ए-पुर-पेच-ओ-ताब आ जाएगा
ज़फ़र
क़ारूँ उठा के सर पे सुना गंज ले चला
ज़फ़र