Sharab Poetry (page 37)
हवा आशुफ़्ता-तर रखती है हम आशुफ़्ता-हालों को
अज़ीज़ हामिद मदनी
एक-आध हरीफ़-ए-ग़म-ए-दुनिया भी नहीं था
अज़ीज़ हामिद मदनी
ऐ शहर-ए-ख़िरद की ताज़ा हवा वहशत का कोई इनआम चले
अज़ीज़ हामिद मदनी
जब किसी रात कभी बैठ के मय-ख़ाने में
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
आज कम-अज़-कम ख़्वाबों ही में मिल के पी लेते हैं, कल
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
वो ये कह कह के जलाता था हमेशा मुझ को
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
घुट घुट कर मर जाना भी
अज़ीज़ अन्सारी
ये बार-ए-ग़म भी उठाया नहीं बहुत दिन से
अज़हर इक़बाल
जफ़ाओं की नुमाइश है किसी से कुछ नहीं बोलें
अज़हर हाश्मी
सुरूर-ए-इश्क़ की मस्ती कहाँ है सब के लिए
अज़ीम कुरेशी
हमारी आँख में ठहरा हुआ समुंदर था
आज़ाद गुलाटी
न पूछो कौन हैं क्यूँ राह में नाचार बैठे हैं
आज़ाद अंसारी
दीवानगी ने ख़ूब करिश्मे दिखाए हैं
अयाज़ झाँसवी
ख़दशे थे शाम-ए-हिज्र के सुब्ह-ए-ख़ुशी के साथ
औलाद अली रिज़वी
घुटी घुटी सी फ़ज़ा में शगुफ़्तगी तो मिली
औलाद अली रिज़वी
दरमियान-ए-गुनाह-ओ-सवाब आदमी
आतिफ़ ख़ान
हम तो बिछड़ के रो लेते हैं
अतीक़ इलाहाबादी
किसे दिमाग़ कि उलझे तिलिस्म-ए-ज़ात के साथ
अताउर्रहमान क़ाज़ी
तमाशा ज़िंदगी का रोज़ ओ शब है
अता आबिदी
इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में
असरार-उल-हक़ मजाज़
आप की मख़्मूर आँखों की क़सम
असरार-उल-हक़ मजाज़
तआरुफ़
असरार-उल-हक़ मजाज़
साक़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़
सानेहा
असरार-उल-हक़ मजाज़
पहला जश्न-ए-आज़ादी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नूरा
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्र-ए-अलीगढ़
असरार-उल-हक़ मजाज़
मेहमान
असरार-उल-हक़ मजाज़
मादाम
असरार-उल-हक़ मजाज़
इशरत-ए-तन्हाई
असरार-उल-हक़ मजाज़