उसी को बात न पहुँचे जिसे पहुँचनी हो
ये इल्तिज़ाम भी अर्ज़-ए-हुनर में रक्खा जाए
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सौग़ात
एक शायर एक नज़्म
वही चराग़ बुझा जिस की लौ क़यामत थी
गली-कूचों में हंगामा बपा करना पड़ेगा
ग़म-ए-जहाँ को शर्मसार करने वाले क्या हुए
कहाँ के नाम ओ नसब इल्म क्या फ़ज़ीलत क्या
सब लोग अपने अपने क़बीलों के साथ थे
रोज़ इक ताज़ा क़सीदा नई तश्बीब के साथ
बन-बास
बेटियाँ बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को पहचानती हैं
ये मो'जिज़ा भी किसी की दुआ का लगता है