अभी छुटी नहीं जन्नत की धूल पाँव से
हनूज़ फ़र्श-ए-ज़मीं पर नया नया हूँ मैं
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हम ने उस चेहरे को बाँधा नहीं महताब-मिसाल
मैं तुम को ख़ुद से जुदा कर के किस तरह देखूँ
इक ख़ला, एक ला-इंतिहा और मैं
सवाद-ए-हिज्र में रक्खा हुआ दिया हूँ मैं
मोहब्बत और इबादत में फ़र्क़ तो है नाँ
कई दिनों से मिरे साथ साथ चलती है
किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं
रुख़्सत-ए-यार का मज़मून ब-मुश्किल बाँधा
कोई वजूद है दुनिया में कोई परछाईं
मैं भी बे-अंत हूँ और तू भी है गहरा सहरा