कई दिनों से मिरे साथ साथ चलती है
कोई उदास सी ठंडी सी कोई परछाईं
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कभी कभी तो ये हालत भी की मोहब्बत ने
आँख झपकी थी बस इक लम्हे को और इस के ब'अद
इक ख़ला, एक ला-इंतिहा और मैं
किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं
ख़ुदा! सिला दे दुआ का, मोहब्बतों के ख़ुदा
सवाद-ए-हिज्र में रक्खा हुआ दिया हूँ मैं
तुम्हें भी चाहा, ज़माने से भी वफ़ा की थी
कोई वजूद है दुनिया में कोई परछाईं
मैं भी बे-अंत हूँ और तू भी है गहरा सहरा
हम ने उस चेहरे को बाँधा नहीं महताब-मिसाल
घेर लेती है कोई ज़ुल्फ़, कोई बू-ए-बदन