ख़्वाब, उम्मीद, तमन्नाएँ, तअल्लुक़, रिश्ते
जान ले लेते हैं आख़िर ये सहारे सारे
Mir Taqi Mir
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Jaun Eliya
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Wasi Shah
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रंग हो रौशनी हो या ख़ुशबू
पयाम ले के हवा दूर तक नहीं जाती
अपने हिस्से में ही आने थे ख़सारे सारे
कोई तो है जो आहों में असर आने नहीं देता
वक़्त हर ज़ख़्म को भर देता है कुछ भी कीजे
क्या जाने शाख़-ए-वक़्त से किस वक़्त गिर पड़ूँ
ये जो आबाद होने जा रहे हैं
मौसम-ए-गुल है तिरे सुर्ख़ दहन की हद तक
अपने लहू में ज़हर भी ख़ुद घोलता हूँ मैं
अजीब ख़ौफ़ का मौसम है इन दिनों 'इमरान'
हार ही जीत है आईन-ए-वफ़ा की रू से