रंग हो रौशनी हो या ख़ुशबू
सब में परतव उसी हसीं के हैं
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Gulzar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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ये जो आबाद होने जा रहे हैं
पयाम ले के हवा दूर तक नहीं जाती
मौसम-ए-गुल है तिरे सुर्ख़ दहन की हद तक
अजीब ख़ौफ़ का मौसम है इन दिनों 'इमरान'
उस का बदन भी चाहिए और दिल भी चाहिए
हार ही जीत है आईन-ए-वफ़ा की रू से
क्या जाने शाख़-ए-वक़्त से किस वक़्त गिर पड़ूँ
वक़्त हर ज़ख़्म को भर देता है कुछ भी कीजे
हम न दुनिया के हैं न दीं के हैं
कोई तो है जो आहों में असर आने नहीं देता
अपने हिस्से में ही आने थे ख़सारे सारे
अपने लहू में ज़हर भी ख़ुद घोलता हूँ मैं