अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी
हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले
एक तारीक ख़ला उस में चमकता हवा मैं
ब-ज़ोम-ए-अक़्ल ये कैसा गुनाह मैं ने किया
अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है
अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया
कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा
चुप है आग़ाज़ में, फिर शोर-ए-अजल पड़ता है
जो बे-रुख़ी का रंग बहुत तेज़ मुझ में है
हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है
ग़मों में कुछ कमी या कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं
अजब है रंग-ए-चमन जा-ब-जा उदासी है