है उन की नज़ाकतों का पाना मुश्किल क्या कीजे बयाँ
समझे हैं वो पाँव का हिलाना मुश्किल ये ताब कहाँ
फ़क़ हो गया रंग मैं ने गुल-रू जो कहा या'नी उन को
तश्बीह का बार है उठाना मुश्किल नाज़ुक है मियाँ
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जो नख़्ल हो ख़ुश्क उस का फलना क्या है
जो है सो पस्त सब से आली तू है
रहबान का क़ैस का महबूब है तू
चलने का तो हो गया बहाना तुम को
मैं ख़ाक था आदमी बनाया तू ने
ज़ोरों पे है रोज़ ना-तवानी मेरी