क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो
ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Gulzar
Anwar Masood
Wasi Shah
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1699) Peoples Rate This
जब से देखा है बना गोश-ए-क़मर में तिनका
कौन सय्याद इधर बहर-ए-शिकार आता है
तुर्रा-ए-काकुल-ए-पेचां रुख़-ए-नूरानी पर
तर्क इन दिनों जो यार से गुफ़्त-ओ-शुनीद है
है दिल को इस तरह से मिरे यार की तलाश
नहीं मिलता दिला हम को निशाँ तक
अपने ही दम से है चर्चा कुफ़्र और इस्लाम का
कभी इधर जो सग-ए-कू-ए-यार आ निकला