तू मुझे ज़हर पिलाती है ये तेरा शेवा
ऐ मिरी रात तुझे ख़ून पिलाया मैं ने
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ऐ अक़्ल नहीं आएँगे बातों में तिरी हम
ये हिजरतों के तमाशे, ये क़र्ज़ रिश्तों के
आँखों में शब उतर गई ख़्वाबों का सिलसिला रहा
एक हंगामा शब-ओ-रोज़ बपा रहता है
इसी जवाब के रस्ते सवाल आते हैं
मकाँ से दूर कहीं ला-मकाँ में बैठ गई
ज़िंदगी हम तिरे कूचे में चले आए तो हैं
हम ज़ब्त की तारीख़ के हैं बाब 'रशीदी'
अपने अंदर के अंधेरे को जलाया मैं ने
अब इस से पहले कि रुस्वाई अपने घर आती