ज़िंदगी हम तिरे कूचे में चले आए तो हैं
तेरे कूचे की हवा हम से ख़फ़ा लगती है
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इश्क़ में लज़्ज़त-ए-आज़ार निकल आती है
इसी जवाब के रस्ते सवाल आते हैं
ख़्वाब में तोड़ता रहता हूँ अना की ज़ंजीर
हम ज़ब्त की तारीख़ के हैं बाब 'रशीदी'
लगता है तबाही मिरी क़िस्मत से लगी है
आज कुछ सूरत-ए-अफ़्लाक जुदा लगती है
सुलगती धूप में जल कर फ़क़ीर-ए-शब तिरी ख़ाक
ये हिजरतों के तमाशे, ये क़र्ज़ रिश्तों के
दिल ये कहता है हार कर देखें
मैं कोई दश्त मैं दीवार नहीं कर सकता
ये मोजज़ा है कि मैं रात काट देता हूँ