ऐ मौज-ए-बला उन को भी ज़रा दो चार थपेड़े हल्के से
कुछ लोग अभी तक साहिल से तूफ़ाँ का नज़ारा करते हैं
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Anwar Masood
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
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जो आग लगाई थी तुम ने उस को तो बुझाया अश्कों ने
हमीं हैं सोज़ हमीं साज़ हैं हमीं नग़्मा
फिर इशरत-ए-साहिल याद आई फिर शोरिश-ए-तूफ़ाँ भूल गए
शमीम-ए-ज़ुल्फ़ ओ गुल-ए-तर नहीं तो कुछ भी नहीं
तुझी से दाद-ए-वहशत लें तुझी को मेहरबाँ कर लें
ग़म की तस्वीर बन गया हूँ मैं
चश्म-ए-सवाल!
आह भी इक कोशिश-ए-नाकाम है मेरे लिए
क्या मातम उन उम्मीदों का जो आते ही दिल में ख़ाक हुईं
जब कश्ती साबित-ओ-सालिम थी साहिल की तमन्ना किस को थी
इक प्यास भरे दिल पर न हुई तासीर तुम्हारी नज़रों की
फ़ुज़ूल राज़ मोहब्बत का सब छुपाते हैं