इक प्यास भरे दिल पर न हुई तासीर तुम्हारी नज़रों की
इक मोम के बे-बस टुकड़े पर ये नाज़ुक ख़ंजर टूट गए
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मौत
उदासियों के सिवा दिल की ज़िंदगी क्या है
उस ने इस तरह मोहब्बत की निगाहें डालीं
जो आग लगाई थी तुम ने उस को तो बुझाया अश्कों ने
अभी सुमूम ने मानी कहाँ नसीम से हार
फिर इशरत-ए-साहिल याद आई फिर शोरिश-ए-तूफ़ाँ भूल गए
मुख़्तसर ये है हमारी दास्तान-ए-ज़िंदगी
हज़ार बार किया अज़्म-ए-तर्क-ए-नज़्ज़ारा
दाग़-ए-ग़म दिल से किसी तरह मिटाया न गया
इस बुत के हर फ़रेब पे क़ुर्बान से रहे
कूचा-ए-यार में अब जाने गुज़र हो कि न हो
तिरी रुस्वाई का है डर वर्ना