मुख़्तसर ये है हमारी दास्तान-ए-ज़िंदगी
इक सुकून-ए-दिल की ख़ातिर उम्र भर तड़पा किए
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क्या मातम उन उम्मीदों का जो आते ही दिल में ख़ाक हुईं
कूचा-ए-यार में अब जाने गुज़र हो कि न हो
फिर इशरत-ए-साहिल याद आई फिर शोरिश-ए-तूफ़ाँ भूल गए
फ़ुज़ूल राज़ मोहब्बत का सब छुपाते हैं
जब कश्ती साबित-ओ-सालिम थी साहिल की तमन्ना किस को थी
आज़ार
फ़ज़ा-ए-शब में सितारे हज़ार गुज़रे हैं
उस ने इस तरह मोहब्बत की निगाहें डालीं
दिल सर्द हो तो वा लब-ए-गुफ़्तार क्या करें
मुस्कुरा कर डाल दी रुख़ पर नक़ाब
मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
अल्लाह-रे बे-ख़ुदी कि चला जा रहा हूँ मैं