अल्लाह-रे बे-ख़ुदी कि चला जा रहा हूँ मैं
मंज़िल को देखता हुआ कुछ सोचता हुआ
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फ़ज़ा-ए-शब में सितारे हज़ार गुज़रे हैं
दिल में कुछ सोज़-ए-तमन्ना के निशाँ मिलते हैं
तुझी से दाद-ए-वहशत लें तुझी को मेहरबाँ कर लें
चश्म-ए-सवाल!
मेरी अर्ज़-ए-शौक़ बे-मअ'नी है उन के वास्ते
मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
सर्व-ओ-समन भी मौज-ए-नसीम-ए-सहर भी है
ऐ मौज-ए-बला उन को भी ज़रा दो चार थपेड़े हल्के से
वही कसीफ़ घटाएँ वही भयानक रात
ग़म की तस्वीर बन गया हूँ मैं
हम दहर के इस वीराने में जो कुछ भी नज़ारा करते हैं
जब कश्ती साबित-ओ-सालिम थी साहिल की तमन्ना किस को थी